चतुर मेमना
एक भेड़िया भूखा था। वह भोजन की तलाश में जंगल में इधर से उधर भटक रहा था। तभी उसे नहर के किनारे से आती एक मेमने के मिमियाने की आवाज सुनाई पड़ी।
यह आवाज सुनकर उसका दिल खुशी से झूम उठा। उसने मन ही मन सोचा, ‘चलो, अब अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ेगा।
क्यों न मैं इस मेमने को खाकर अपनी भूख शांत कर लो। उसने जल्दी से नहर के पास जाकर देखा कि सामने स्थित एक पहाड़ी पर वह मेमना खड़ा है। उनके बीच पर्याप्त दूरी थी।
भेड़िये के वहाँ पहुँचने से पहले मेमना भाग भी नहीं सकता था। इसलिए भेड़िये ने एक योजना बनाई और बोला, “प्यारे छोटे मेमने! यहाँ नीचे चरागाह में आ जाओ।
यहाँ पर चरने के लिए हरी-हरी नर्म घास है। तुम यहाँ पर नहर का ठंडा मधुर जल भी पी सकते हो।” चालाक मेमना भेड़िए की चालाकी भाँपकर बोला, “सुझाव के लिए धन्यवाद भेड़िया भाई।
लेकिन मैं यहीं पर ठीक हूँ। यहाँ मेरे लिए पर्याप्त घास है। इस तरह भेड़िए की योजना असफल हो गई। किसी ने ठीक ही कहा है कि मक्का से होशियारी अच्छी होती है।
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