आस्था
धर्मदास एक मेहनती एवं ईश्वर में आस्था रखने वाला व्यक्ति था। अपनी सफलता के लिए वह हमेशा ईश्वर को धन्यवाद दिया करता था। धीरे-धीरे कठिन परिश्रम कर वह एक सफल व्यवसायी बन गया।
लेकिन अब उसे अपने ऊपर घमंड हो गया। वह सोचता कि वह सिर्फ अपने कठिन परिश्रम से ही सफल हुआ है, इसमें भगवान का कोई हाथ नहीं है।
इसलिए उसकी भगवान में आस्था कम हो गई और उसने भगवान की पूजा करनी छोड़ दी। एक बार लोगों के बीच भगवान को लेकर बहस होने लगी.
तो धर्मदास बोला,”भगवान कौन है? वह है ही नहीं! देखो मैं अपने कठिन परिश्रम के कारण ही आज सफल हुआ हूँ। और यदि वास्तव में भगवान शक्तिशाली है, तो वह मुझे दो मिनट में मारकर दिखाए।
मैं उसे चुनौती देता हूँ।” दो मिनट बाद धर्मदास स्वयं को जिंदा पाकर भगवान के ऊपर हँसने लगा। तब एक बूढ़ा बोला,”यदि तुम्हारा बेटा तुमसे ऐसा करने को कहता तो क्या तुम उसे मार डालते?
भगवान हमारे पिता के समान हैं। वह कभी तुम्हें हानि नहीं पहुंचा सकते। तुम्हारी सफलता में भगवान का ही आशीर्वाद है।” धर्मदास को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने घमंड करना छोड़ दिया।
और वह एक बार फिर ईश्वर में विश्वास करने लगा।
0 Comments